Man Ki Tarng Maar Bhajan Lyrics - मन की तरंग मार लो, बस हो गया लिरिक्स
प्रकाशित: 15 May, 2025
पिंड ब्रह्मांड में खेल खेल के, अमर जहागिरी पायी
संतो सद्गुरु अलख लखाई
धरता को करता कर पकडा, आप बंधा ऊन माई
निर्बंध निर्गुण निराधारा, बिर्ला संत पाई
बिरला संत सब विधी जाने, प्रगट भेद बताई
अकल कला ओलखा अविनाशी,आवागमन न आई
आवागमन मिटा मिला अविनाशी, सोहे सबर सदाई
सहज समान मिला सबरंगी हंस रहा स्थिर वाही
जियाराम मिला गुरुपुरा, निर्भय धाम बताई
बन्नानाथ उधर किया आसन, कब हुं काल न खाई
यह भजन गहरे आध्यात्मिक ज्ञान की ओर संकेत करता है। इसमें शरीर (पिंड) और ब्रह्मांड (अंड) के रहस्य को संतों द्वारा जाने गए अनुभवों के माध्यम से बताया गया है। भजन में यह संदेश है कि सच्चे संत और सद्गुरु ही उस 'अलख' (अदृश्य) सत्य को देख पाते हैं जो निर्गुण, निराकार और निराधार है।
यह भजन बताता है कि आत्मा का मिलन अविनाशी (अनश्वर) से हो सकता है।
गुरुपुरा (गुरु का धाम) एक निर्भय स्थान है, जहाँ काल (मृत्यु) का प्रभाव नहीं होता।
जो संत इस सत्य को पहचान लेते हैं, वे आवागमन (जन्म और मृत्यु के चक्र) से मुक्त हो जाते हैं।
Q1: इस भजन का मुख्य संदेश क्या है?
उत्तर: भजन आत्मा की शुद्धता, गुरु की महिमा और ब्रह्मज्ञान की अनुभूति पर आधारित है। यह जन्म-मरण के चक्र से मुक्ति और आत्मा के परमात्मा में विलीन होने की ओर प्रेरित करता है।
Q2: 'पिंड ब्रह्मांड में खेल खेल के' का क्या अर्थ है?
उत्तर: यह दर्शाता है कि आत्मा ने शरीर और संसार (पिंड और ब्रह्मांड) में आकर अनेक अनुभव किए, लेकिन अंतिम लक्ष्य अमरता और मुक्ति है।
Q3: गुरुपुरा क्या है?
उत्तर: 'गुरुपुरा' एक प्रतीकात्मक शब्द है जो उस आध्यात्मिक धाम का संकेत देता है जहाँ आत्मा को सत्य ज्ञान और मुक्ति प्राप्त होती है।
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