भोर भये पंक्षी वन बोले - जागो जनक किशोरी प्रभाती भजन लिरिक्स
प्रभाती भजन
भोर भये पंक्षी वन बोले।
जागो जनक किशोरी।। टेर ।।
भोर भयी पंक्षी वन बोले
जागो जनक किशोरी
भोर भये पंक्षी वन बोले
जागो जनक किशोरी।। टेर ।।
सुर नर मुनि भी ब्रम्हा भयी देवता
देव परस कर सोयी।
चौकी चन्दन और अरज।।
मुखमल बेटी रोयी
जागो जनक किशोरी।
भोर भये पंक्षी वन बोले।।
जागो जनक किशोरी।
जागो जनक किशोरी।
जागो जनक किशोरी।
बदी जन कन्द व कुन गावे।
आ काई कंद जन किशोरी।
पिट पीताम्बर आसाम्मल।
रतन जड़ाव किशोरी।
भोर भये पंक्षी वन बोले।
जागो जनक किशोरी।। टेर ।।
तुनक तुनक महलों पिच होवे।
नू सबक करारी
सुनते मुनि जन मन मोहे।
अस्तुती करी है गिनो है।
भोर भयी पंक्षी वन बोले।
जागो जनक किशोरी।।।
कोई सखी अहंकार संवरे।
कोई तने पंछी मोरी
तुलसीदास कपटे में,
अब देख मगन में
आज्ञा ज्ञा प्रण में आज्ञा परणु मस्ती मती होरी
भोर भयी पंक्षी वन बोले
जागो जनक किशोरी।
प्रेषक :- दिलीपकुमार जी सैन ( राडावास )
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