निर्गुणी सत्संगी भजन लिरिक्स हिंदी में

    मुर्खा रे क्यों आंख्यां हिया की फुटी राजस्थानी भजन लिरिक्स

    मुर्खा रे क्यों आंख्यां हिया की फुटी राजस्थानी भजन लिरिक्स
    20 May
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    "मुर्खा रे क्यों आंख्यां हिया की फुटी"

    📝 मूल भजन (मारवाड़ी भाषा में):

     मुर्खा रे क्यों आंख्यां हिया की फुटी

     

    वाद विवाद करे सत्संग में, बात बंणावे उल्टी  ।।टेर।।

     

    अपना कर्म धर्म न सुझे, गंगा बह रही उल्टी।

    साध-सत्यां की करे उतराई, है नुगरां की घुँटी ।।1।।

     

    कलयुग आय कलेजे बेठयो, ज्यां की मतीयां उल्टी।

    लप-लप बातां करे अचुंगी, प्रीत राम से नाँटी  ।।2।।

     

    नाँ कोई खावे न खाँवण दे, ज्युं अड़वा की खूँटी।

    शबद विचार सार न जांणे, थोथी जिव्या कुटी  ।।3।।

     

    निर्दोषी के दोष लगावे, सांखा देवे झुठीं।

    धर्मराय थारो लेखो लैसी, जमड़ा मारें लाठी ।।4।।

     

    गुलाबयति गुरू सत समझावे, घोल पिलाई घुंटी।

    गंगायति कहं नर समझ अज्ञानी, क्यों करे कमाई माठी ।।5।।


    🌟 प्रमुख संदेश:

    यह भजन व्यक्ति को आत्मचिंतन की ओर प्रेरित करता है। इसमें बताया गया है कि कलियुग में इंसान किस प्रकार अपनी सही सोच खोकर, गलत राह पकड़ लेता है। साधु-संतों और सच्चे ज्ञान को छोड़कर वह उल्टे कर्मों में लिप्त हो जाता है।


    📌 FAQs (अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न):

    Q1: यह भजन किस भाषा में है?

    उत्तर: यह भजन राजस्थानी/मारवाड़ी भाषा में है, जो राजस्थान क्षेत्र में बोली जाती है।

    Q2: इस भजन का मूल भाव क्या है?

    उत्तर: आत्मचिंतन, धर्म से विमुखता और सत्संग की उपेक्षा पर व्यंग्य है। यह भजन गलत आदतों और सोच पर कटाक्ष करता है।

    Q3: "गुलाबयति गुरु" कौन हैं?

    उत्तर: गुलाबयति एक संत या गुरु परंपरा है जो भक्ति और ज्ञान के मार्ग पर चलने की प्रेरणा देती है। इसमें संत गुलाबदास जी के उपदेशों का प्रभाव दिखता है।

    Q4: "गंगा बह रही उल्टी" का क्या मतलब है?

    उत्तर: यह प्रतीक है कि दुनिया में धर्म के विपरीत आचरण हो रहा है, जैसे कि पवित्र गंगा भी उल्टी दिशा में बह रही हो।

    Q5: इस भजन से क्या सीख मिलती है?

    उत्तर: सच्चे गुरु की संगति में रहकर सही जीवन मार्ग अपनाना और व्यर्थ वाद-विवाद व झूठ से दूर रहना।


    📚 निष्कर्ष:

    "मुर्खा रे क्यों आंख्यां हिया की फुटी" सिर्फ एक भजन नहीं, बल्कि एक गहरा संदेश है जो हमें अपने कर्म, धर्म और सोच की समीक्षा करने के लिए कहता है। यह कलियुग की सच्चाइयों को उजागर करता है और हमें सच्चे मार्ग पर चलने की प्रेरणा देता है।


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