निर्गुणी सत्संगी भजन लिरिक्स हिंदी में
चंचल मन निशदिन भटकत है हिंदी भजन लिरिक्स
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चंचल मन निशदिन भटकत है हिंदी भजन लिरिक्स
चंचल मन निशदिन भटकत है
एजी भटकत है भटकावत है ॥ टेक ॥
जिम मर्कट तरु ऊपर चढकर डार डार पर लड़कत है ॥
रुकत जतन क्षण विषयन तें फिर तिनही में अटकत है ॥
काच के हेत लोभकर मूरख चिंतामणि को पटकत है ॥
ब्रम्हानंद समीप छोडकर तुच्छ विषय रस गटकत है ॥
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