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    कळप मत काछब कुड़ी भजन लिरिक्स

    कळप मत काछब कुड़ी ए
    रमय्ये री बाता रूडी ए
    भक्ति का भेद भारी रे
    लख कोई संतां का प्यारा।

    काछवो काछ्वी रेता समद म
    होया हरी का दास
    साधू आवत देख के रे
    सती नवाया शीश
    पकड़ झोळी म घाल्या रे
    मरण की अब के बारी रे।

    कहे कछ्वी सुण रे काछवा
    भाग सके तो भाग
    घाल हांडी में चोडसी रे
    तळ लगावे आँच
    पड्यो हांडी में सीज रे
    रूस गयो कृष्ण मुरारी रे।

    कहे काछ्वो सुण ए काछवी
    मन में धीरज राख
    त्यारण वालो त्यारसी रे
    सीतापति रघुनाथ
    भगत न त्यारण आवे रे
    गोविन्दो दोड्यो आवे रे।

    कहे काछ्वो सुण रे सांवरा
    भव लगादे पार
    आज सुरजिया उदय नहीं होवे
    आवे अमीरी मोत
    भगत की हांसी होव रे
    ओळमो आवे थाने रे।


    उतराखंड से चली बादळी
    इन्द्र रयो घरराय
    तीन तूळया रि झोपड़ी रे
    चढ़ी आकाशा जाय
    पाणी की बूंदा बरसे रे
    धरड धड इन्द्र गाजे रे।


    किसनाराम की विनती साधो
    सुनियो चित्त लगाय
    जुग जुग भगत बचाइया रे
    आयो भगत के काज
    गावे यो जोगी बाणी रे
    गावे यो पध निरबाणी रे।

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