अभिमानी राजा लागे धर्म को जेठ भक्ति भजन लिरिक्स

    रति नाथ भजन

    • 29 May 2025
    • Admin
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    अभिमानी राजा लागे धर्म को जेठ भक्ति भजन लिरिक्स

    अभिमानी राजा लागे धर्म को जेठ

    सोम वंस सूरज कुल माहीं, ऐसी होव होने की नाहीं

    रूठ गए मेरे पांचो साई, कर्म बलि गयो लेख।।

     

    तू क्यों राजा करे अंधेरी, पुत्री समान लागूं में तेरी

    देखता मोहे नग्न उघाड़ी,काई भर ज्यासी थारो पेट।।

     

    भरी सभा का अंश देख के, भीष्म लीन्हा नैन मीच के

    रयो दुशासन चीर खींच के, अर्ज लागि है बांकी ठेठ।।

     

    द्रोपती अर्ज करे सबसे, मेरी लाज रहेगी तुमसे

    अब तो पीछा छुटा दे जम से, अर्ज करि है कर जोड़।।

     

    कह धुंकल यूँ बात विचारी, अनहोनी कर रयो असुरारी

    चीर बीच पहुंचे बनवारी, द्रोपती की लाज राखी टेक।।

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