हो घोड़े असवार भरथरी भजन लिरिक्स | Bharthari Bhajan Lyrics in Hindi
हो घोड़े असवार भरथरी, बियाबान मँ भटक्या।
बन कै अन्दर तपै महात्मा,देख भरथरी अटक्या॥टेर॥
घोड़े पर से तुरत कूद कर, चरणां शीश नवाया।
आर्शीवाद देह साधू ने, आसन पर बैठाया॥
बडे प्रेम सँ जाय कुटी मँ, एक अमर फल ल्याया।
इस फल को तू खाले राजा, अमर होज्या तेरीकाया
राजा नै ले लिया अमर फल, तुरत जेव मँ पटक्या।
बन कै अन्दर तपै महात्मा, देख भरथरी अटक्या॥1॥
राजी होकर चल्या भरथरी, रंग महल मँ आया।
राणी को जा दिया अमरफल, गुण उसका बतलाया॥
निरभागण राणी नै भी वो नहीं अमर फल खाया।
चाकर सँ था प्रेम महोबत उसको जा बतलाया॥
प्रेमी रै मन प्रेमी बसता, प्रेम जिगर मँ खटक्या।
बन कै अन्दर तपै महात्मा, देख भरथरी अटक्या॥2॥
उसी शहर की गणिका सेती, थी चाकर की यारी।
उसको जाकर दिया अमरफल थी राणी सँ प्यारी॥
अमर होयकर क्या करणा है, गणिका बात बिचारी।
राजा को जा दिया अमरफल,इस को खा तपधारी॥
राजा नै पहचान लिया है, होठ भूप का छिटक्या।
बन कै अन्दर तपै महात्मा, देख भरथरी अटक्या॥3॥
क्रोधित होकर राज बोल्या, ये फल कित सँ ल्याई।
गणित सोच्या ज्यान का खतरा, साँची बात बताई॥
चाकर दीन्या भेद खोल, जद होणै लगी पिटाई।
हरिनारायण शर्मा कहता, बात समझ में आई॥
उपज्जा ज्ञान भरथरी को जद, बण बैरागी भटक्या।
बन कै अन्दर तपै महात्मा, देख भरथरी अटक्या॥4॥
✅ FAQs (Frequently Asked Questions)
Q1: "हो घोड़े असवार भरथरी" भजन किसके बारे में है?
A: यह भजन राजा भरथरी के जीवन पर आधारित है, जिन्होंने राज-पाट छोड़कर संन्यास का मार्ग चुना था।
Q2: इस भजन की भाषा क्या है?
A: यह भजन राजस्थानी और हिंदी लोक भाषा के मिश्रण में रचा गया है।
Q3: इस भजन में क्या संदेश है?
A: भजन विरक्ति, वैराग्य और आत्मबोध का संदेश देता है, जहाँ राजा भरथरी जंगल में भटकते हुए आत्मज्ञान की खोज करते हैं।
Q4: क्या यह भजन किसी खास मौके पर गाया जाता है?
A: इसे अक्सर सत्संग, लोक संगीत कार्यक्रमों और विरक्त संतों की जयंती पर गाया जाता है।
Q5: क्या इसका ऑडियो या वीडियो उपलब्ध है?
A: हाँ, यह भजन कई भजन गायकों द्वारा गाया गया है और YouTube जैसे प्लेटफ़ॉर्म पर उपलब्ध है।
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