Man Ki Tarng Maar Bhajan Lyrics - मन की तरंग मार लो, बस हो गया लिरिक्स
प्रकाशित: 15 May, 2025
भजन ईश्वर की लीला को
हे भगवान दया के सागर, अजब निराला कार तेरा।
तीन लोक अरू चोदह भवन, में पाया कोन्या पार तेरा ।। टेर ।।॥
कहीं अंधेरा कहीं उजाला, कहीं पे बादल घिरे पड़े।
कहीं कड़कता कहीं बरसता, कहीं पे जोहड़ भरे पड़े ॥
कहीं पड़या खाने का टोटा, कही पे कंचन धरे पड़े।
कहीं खुशी के बाजे बजते, कही पे मुर्दे मरे पड़े ॥
मो माया के फन्दे में फंस, भटक रहया संसार तेरा ॥१॥
कहीं शहर आबाद हो रहे, कही पे जंगल पड़े हुए।
कहीं छान पर फूस नहीं है कही पे पत्थर जड़े हुए।
कहीं लग रहे बाग बगीचे, कहीं ते पर्वत खड़े हुए।
कहीं पान फल फूल खिल रहे, कही पे पत्ते झड़े हुए॥
भेद भर्म नां पाया कोई, दीन बन्धु दातार तेरा ॥ २॥
कहीं प्रेम है कहीं दुश्मनी, कहीं पे दंगे मचे हुए।
कहीं साफ मैदान पड़े हैं, कहीं पे डंडे खिंचे हुए ॥
कहीं कुआ तालाब झील है, कहीं पे सागर रचे हुए।
कहीं छिड़ी घमासान लड़ाई कहीं पे भागे बचे हुए ॥
लीला अपरम्पार जगत में, दीखे ना आकार तेरा ॥ ३॥
कीड़ी को कण हाथी को मण, देने वाला ईश्वर तू।
रोज सवेरे दाना पाणी, ल्याता गाड़ी भर भर तू ॥
कर्मों के अनुसार सभी को, पहुंचा देता घर घर तू।
भले बुरे का न्याय करणिया, आखिर परमेश्वर है तू।।
हरनारायण शर्मा कहता, भगतों को आधार तेरा ॥४॥
प्रकाशित: 15 May, 2025
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