मन मस्त हुआ फिर क्या बोले भजन लिरिक्स
मन मस्त हुआ फिर क्या बोले
मन मस्त हुआ फिर क्या बोले।
क्या बोले फिर क्या बोले ,
मस्त हुआ फिर क्या बोले।
हीरा पाया बाँध गठरियाँ ,
बार बार बांको क्यों खोले।
मन मस्त हुआ फिर क्या बोले।
हंसा नहावे मान सरोवर ,
ताल तलैया क्यों नहावे ।
मन मस्त हुआ फिर क्या बोले।
हल्की थी तब चढ़ी तराजू ,
पूरी भई बांको क्यों तोले।
मन मस्त हुआ फिर क्या बोले।
सूरत कलाळी भई मतवाली ,
मदवा पी गयी अण तोले।
मन मस्त हुआ फिर क्या बोले।
तेरा सायब है तुझ माही ,
बाहर नैना क्यों खोले।
मन मस्त हुआ फिर क्या बोले।
कहत कबीर सुनो भाई साधो ,
साहेब मिल गये तिल तोले।
मन मस्त हुआ फिर क्या बोले।
✅ FAQs (Frequently Asked Questions)
Q1: "मन मस्त हुआ फिर क्या बोले" का क्या अर्थ है?
A: इसका अर्थ है जब मन पूर्ण रूप से भगवान या सत्य में लीन हो जाता है, तब शब्दों की आवश्यकता नहीं रहती। वहाँ मौन ही सबसे बड़ा अनुभव होता है।
Q2: यह भजन किसकी रचना है?
A: यह भजन संत कबीर, संत रविदास या अन्य निर्गुण भक्ति संतों की वाणी से प्रेरित माना जाता है।
Q3: यह भजन किस शैली में आता है?
A: यह भजन निर्गुण भक्ति और सूफी दर्शन से जुड़ा हुआ है। इसमें आत्मिक अनुभव और आंतरिक शांति पर बल दिया गया है।
Q4: इस भजन को कहाँ गाया जाता है?
A: यह भजन आमतौर पर सत्संग, ध्यान शिविर, भजन संध्या, और संत समागमों में गाया जाता है।
Q5: क्या यह भजन ध्यान के लिए उपयुक्त है?
A: हाँ, यह भजन मौन साधना और आत्मचिंतन के लिए अत्यंत उपयुक्त है। यह गहरे ध्यान में ले जाने वाला भजन है।
Q6: क्या इसका कोई प्रसिद्ध गायक है?
A: हाँ, यह भजन प्रह्लाद टिपानिया, चैतन्य भक्त मंडल, और अन्य निर्गुण भजन गायकों द्वारा प्रस्तुत किया गया है। यूट्यूब पर इसके कई संस्करण उपलब्ध हैं।
Q7: क्या इसका अर्थ और भावार्थ समझने योग्य है?
A: अवश्य। यह भजन शारीरिक इंद्रियों से परे, आत्मा की अवस्था का अनुभव कराता है। इसका भावार्थ है – जब आत्मा प्रभु से मिलन कर लेती है तो दुनिया की बातों का कोई अर्थ नहीं रह जाता।
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