Man Ki Tarng Maar Bhajan Lyrics - मन की तरंग मार लो, बस हो गया लिरिक्स
प्रकाशित: 15 May, 2025
भजन:
उँण निन्द्रा में राम नहीं दरसे फिर-फिर गोता खाई। ॥टेरा।
गंगा न्हावो चाहे यमुना न्हावो न्हावो सुखमण जाई।
घट का मेल तेरा कदे न उतरे भटक भटक मर जाई ।।'
जन्म जन्म का पाप करेड़ा आगे चोड़े आई।
मालिक से या छांनी नाहीं मुर्ख विचारे नाई ।।2।।
काल बेरी डाकी कहिजे आवे बँणके खसाई ।
एक एक को टो लेसी पाछे तु पिस्ताई ।।3।।
गुलाबयति गुरू सामर्थ मिलिया ज्यांके संग में आई।
गंगायति पर कृपा कीनि फेर जन्म न पाई ।।4।।
यह संत भजन हमें सच्चे आत्म-चिंतन और साधना की ओर प्रेरित करता है:
“हँसला मत कर निन्दा पराई है” – दूसरों की निन्दा करके आत्मा का कल्याण नहीं होता। जो परनिन्दा में डूबा रहता है, उसे प्रभु के दर्शन नहीं होते।
गंगा या यमुना में स्नान करने से शुद्धि तभी होती है जब अंत:करण शुद्ध हो। अगर मन में मेल (दोष) है, तो चाहे जितना बाहरी स्नान कर लो, आत्मा पवित्र नहीं होती।
पापों का बोझ जन्म-जन्मांतर से चला आ रहा है, पर मनुष्य अंत में उसे छोड़ने आता है, तब तक बहुत देर हो चुकी होती है।
काल (मृत्यु) शत्रु की तरह आता है और एक-एक को पकड़ता है। उस समय पछताना व्यर्थ है।
गुलाबयति जैसे समर्थ गुरु की कृपा से ही आत्मा का उद्धार होता है, और सच्ची भक्ति से ही पुनर्जन्म का चक्र टूटता है।
👉 निन्दा, अहंकार और बाह्य आडंबरों से मुक्ति पाकर
👉 सच्चे गुरु की शरण में जाकर
👉 अंतर्मन की शुद्धि से ही मोक्ष संभव है।
Q1. इस भजन का मूल संदेश क्या है?
👉 दूसरों की निन्दा से बचकर आत्म-चिंतन और गुरु-कृपा से मोक्ष प्राप्त करना।
Q2. “घट का मेल” का क्या मतलब है?
👉 यह हमारे अंदर के दोषों और बुरे संस्कारों का प्रतीक है।
Q3. गुरु कृपा का क्या महत्व है?
👉 सच्चे गुरु की संगति और कृपा से ही आत्मा का उद्धार होता है।
निष्कर्ष:
यह भजन हमें सिखाता है कि सच्ची भक्ति बाहरी नहीं, आंतरिक होती है। आत्मा की सफाई बिना सच्चे गुरु और भक्ति के संभव नहीं। इसलिए जीवन में जब भी अवसर मिले, आत्म-निरीक्षण करें और सत्संग अपनाएं।
प्रकाशित: 15 May, 2025
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