गणगोर की कहानी लिरिक्स

    गणगोर लोकगीत

    • 25 Mar 2025
    • Admin
    • 717 Views
    गणगोर की कहानी लिरिक्स

    गणगोर की कहानी

    राजा क बाया जौ-चाना, माली क बायी दूब । राजा का

    औ-चना बढ़ता गया, माली की दूब घटती गई। एक दिन माली

    सोच्यो कि या के बात है, राजा का जौ-चना तो बढ़ता जाव पेरी

    घटती जाव। एक दिन गाड़क ओल ल्हुक क बैठगी कि

    खां के बात है। देख छोरियां आई हैं और दूब तोड़कर लेजाव

    है, जना बो ऊँ ना का कोई घाघरा खोस लिया, कोई का ओढ़ना।

    बोल्यो कि थे मेरी दूब क्यूँ लेजाओ हो। छोरियां बोली कि म्है

    सोलह दिन गणगोर पूँजा हो, सो म्हारा घाघरा-ओढ़ना दे दे।

    सोलह दिन बाद गनगोर विदा होसी, जिक कदन म्हे तन भर-भर

    कुन्डारा सीरो-लापसी का ल्याकर देवांगा। पिछ वो सबका कपड़ा

    पाछा दे दिया। सोलह दिन पूरा होगा, छोरियां भर-भर सीरी

    लापसी मालन न ल्याकर देई। बारन स मालन को बेटो आयो

    बोल्यो कि मां भूख लागरी है। मालन बोली कि बेटा आज तो

    छोरियां घणा ही सीरा-लापसी का कुन्डारा देगी है। ओबरी म

    पड्या है खाले। बेटा आबेरी खोल न लाग्यो, तो ओबरी खुली

    कोनी, जद माँ आ क चिटली आंगली को छींटो दियो तो ओबरी

    खुलगी। देख तो इसरजी तो पेचो बांध, गोरा चरखो का तह,

    सारी चीजां स भन्डार भरया पड्या है। भगवान, इसर को सो

    भाग दिये, गोरा को सो सुहाग दिये, कहतां नं, सुनतां नं, अपना

    सारा परिवार न देइये।


    बिन्दायकजी की कहानी

    एक दिन बिन्दायकजीको मेलो लाग रयो थो। सब

    मेला म जाव था। एक छोटी सी छोरी थी, जिकी आपनी मांस

    बोली कि म भी जाऊँगी।मां बोली कि ऊठ भोत भीड़ है, जिको

    कठदब-चिथ जावगी। पर छोरी जिद कर लियो किमतो जाऊँगी।

    जना मां ऊँ न दो चूरमा का लाड्डू और घंटी म जल दिया और

    दूसरो तू खाकर पानी पी लिये। छोरी मेला म चली गई। सब

    बोली कि एकलाड्डू तो गणेशजीनखुवा कर पानी प्या दियो, ।

    घरां चाल। छोरी बोली कि म तो गणेशजी न लाड्डू खुवाये

    कोई मेलो देख कर पाछा आन लाग्या, तो छोरी न बोल्या कि

    बिना कोनी जाऊँ और गणेशजी का आग बैठगी और कहती

    गई–'एक लाड्डू तुझको एक लाड्डू मुझको' ।अईयां ही सारी

    रात बीतगी। गणेशजी सोच्यो कि अगर लाड्डू नहीं खाऊँगा तो

    या घरां कोनी जावगी, सो छोटो सो रूप धर कर आया और छोरी

    स लाड्डू लेकर खा लिया पानी पी लियो और बोल्या कि तूं कुछ

    मांग। छोरी बोली कि म न तो मांगनी कोनी आव। बिन्दायकजी

    बोल्या आव सो ही मांगले।

    छोरी बोली-'अन्न मांगू, धन मांगू, लक्ष्मी मांगू, नो खन्ड महल, चौरासी दिया, हाथीहँस, बान्दी पी

    स, छूटी हार, सेज भरतार, रुनझुन बैल इतनो मांगू हूँ।

    बिन्दायकजी बोल्या छोरी छोटी सी दिख थी, भोत मांग लियो,

    पर जा तेर इतनो ही हो जासी। छोरी न सब कुछ मिलगो।रुनझुन

    बैल म बैठ कर, सारो समान और सब न लेकर आप क घरांगई।

    मां बोली कि सब तोमे लम स आगा, तूं इतनी देर के कर थी।

    छोरी बोली कि सब कोई तो मेलो देख कर आगा, म तो

    बिन्दायकजी न चूरमो खुवाकर जल प्या कर आई हूँ। बिन्दायकजी

    मेर पर राजी हो गया और म न इतनो धन, सब चीजा दिया है। ऊं

    की मां और दुनिया देखती रहगी। सब कोई बिन्दायकजी की

    भोत मानता कर लागा। हे बिन्दायकजी महाराज! जिसो बी छोरी

    न दियो, बिसो सब न दियो, कहतां न, सुनतां न, हुंकारा भरता

    न, आपना सारा परिवार न दियो।

    जय श्री गणेश


    गणगोर केऔर भी सुंदर गीत लिरिक्स आप नीचे देख सकते है

    Share This Post:
    WhatsApp Group Join Now
    Telegram Group Join Now

    Popular Bhajan Lyrics

    Stay Connected With Us