मेरी मटकी का कर गयो टूक भजन लिरिक्स

    राधा कृष्ण भजन

    • 28 Apr 2025
    • Admin
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    मेरी मटकी का कर गयो टूक भजन लिरिक्स

    🌸 मेरी मटकी का कर गयो टूक – मैया तेरो बनवारी

    कृष्ण की बाल लीलाओं में रची–बसी गोपियों की पीड़ा और प्रेम की मधुर झलक

    कृष्ण भक्ति की दुनिया में जब "गोपियों की मटकी" का ज़िक्र आता है, तो उसमें सिर्फ दूध-दही नहीं, प्रेम, पीड़ा, शरारत और समर्पण भी घुला होता है।
    यह भजन "मेरी मटकी का कर गयो टूक, मैया तेरो बनवारी" कृष्ण की बाल लीलाओं का सुंदर वर्णन करता है — जहां वो नटखट बालक बनकर गोपियों की मटकी फोड़ देते हैं और उनके हृदय में अमिट छाप छोड़ जाते हैं।

    मेरी मटकी का कर गयो टूक भजन लिरिक्स

    मेरी मटकी का कर गयो टूक, मैया तेरो बनवारी |

    मेरी मोड़ दी कलाई, बीन दया कोनी आई,
    मेरे मंगरा म मारयो एक डुक,मैया तेरो बनवारी......

    ग्वालियाँ ने ल्याके घर में, रुसनो मचा दियो |
    दूध दही चुटियो सों, माटी में मिलाय दियो | |
    म्हासु बोल्यो कोनी जावे, मेरो हियो भर आवे,
    मेरे कालजे में उठ रही हूक | १ |
    मेरी मटकी का कर गयो टूक, मैया तेरो बनवारी......

    पानीड़ा भरे ही मैं तो जमुना पे जाईके |
    इते में मारी कुबदी, गींडी को घुमाय के | |
    में क्या में ल्याऊ पाणी, मेरी लड़ेगी जिठाणी,
    मारे डर के रही हूं में तो सुख | २ |
    मेरी मटकी का कर गयो टूक, मैया तेरो बनवारी......

    सोवणी सी छांट के मैं, ल्याई थी कुम्हार से।
    एक दिन भी कोन्या बच्ची, जुल्मी की मार से | |
    देखो करके जुल्म, वो तो चढ़गो कदम,
    रह्यो मुख से मुरलिया फूंक | ३ |
    मेरी मटकी का कर गयो टूक, मैया तेरो बनवारी......

    💠 भजन का भावार्थ: पीड़ा में भी प्रेम है

    यह भजन श्रृंगार रस और वात्सल्य रस का सुंदर संगम है। एक तरफ गोपी की नाराज़गी है — क्योंकि कृष्ण ने उसकी मटकी तोड़ दी, उसे छेड़ा, और उसकी साज-सज्जा को बिगाड़ा; वहीं दूसरी तरफ, हर शिकायत में प्रेम है, वो कृष्ण की छवि से मुक्त ही नहीं होना चाहती।


    📿 निष्कर्ष: लीला में लीना हो जाना ही भक्ति है

    "मेरी मटकी का कर गयो टूक" कोई साधारण शिकायत नहीं, यह भक्त की पुकार है — जो उसे पीड़ा भी दे रही है, लेकिन उसी पीड़ा में उसे परम आनंद मिल रहा है।
    यह भजन हमें सिखाता है कि सच्चा भक्ति भाव वही है, जहाँ प्रेम में ईश्वर की हर लीला स्वीकार हो — चाहे वो मटकी तोड़ना ही क्यों न हो।

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