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रूप बसंत की कथा


बहुत समय पहले की बात है, किसी राज्य में एक राजा राज करता था। उसकी दो रानियाँ थीं, लेकिन दोनों को संतान नहीं थी। राजा को इस बात की चिंता सताने लगी कि उसके राज्य का वारिस कौन होगा। एक दिन, राजा ने संतान प्राप्ति के लिए एक तपस्वी से आशीर्वाद मांगा। तपस्वी ने उसे एक दिव्य फल दिया और कहा कि इसे रानियों को खिलाने से उन्हें संतान की प्राप्ति होगी।


राजा ने फल दोनों रानियों को दिया। कुछ समय बाद, बड़ी रानी के गर्भ से एक सुंदर पुत्र जन्मा, जिसका नाम रूप रखा गया। कुछ समय बाद, छोटी रानी के गर्भ से एक और पुत्र हुआ, जिसका नाम बसंत रखा गया। दोनों राजकुमार बड़े होकर वीर, बुद्धिमान और पराक्रमी बने।


रूप और बसंत का बनवास


समय बीतता गया और राजा वृद्ध हो गया। दरबार के कुछ मंत्री और राजकुमारों के सौतेले रिश्तेदार उनके विरुद्ध षड्यंत्र रचने लगे। उन्होंने राजा को यह कहकर बहकाया कि दोनों राजकुमार राजा के खिलाफ षड्यंत्र कर रहे हैं। राजा ने क्रोधित होकर दोनों राजकुमारों को वनवास दे दिया।


वन में रूप और बसंत ने कई कठिनाइयों का सामना किया, लेकिन वे दोनों परस्पर प्रेम और एकता से रहते थे। उन्होंने जंगल में ऋषियों की सेवा की और कई विद्याओं में निपुण हो गए।


न्याय और सत्य की विजय


इधर, राज्य में षड्यंत्रकारी मंत्रियों ने राजा को और अधिक भ्रमित कर दिया और शासन अपने हाथ में ले लिया। लेकिन एक दिन, जब राजा को सच्चाई का पता चला, तो उसने अपने बेटों को वापस बुलाने का निर्णय लिया।


रूप और बसंत जब वापस आए, तो उन्होंने मंत्रियों की साजिशों का भंडाफोड़ किया और अपने साहस व बुद्धिमानी से राज्य को बचाया। राजा को अपनी गलती का अहसास हुआ और उसने सिंहासन रूप और बसंत को सौंप दिया।


रूप और बसंत ने न्याय और धर्मपूर्वक राज्य किया। उनके राज्य में सभी सुखी और समृद्ध थे। इस प्रकार, सत्य और न्याय की विजय हुई।


👉 शिक्षा: यह कथा हमें सिखाती है कि सच्चाई और अच्छाई की हमेशा जीत होती है, चाहे कितनी भी कठिनाइयाँ क्यों न आएं।





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