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    बाबा रामदेव जी की जन्म कथा लिरिक्स || Baba Ramdev Janma Katha In Hindi Lyrics

    बाबा रामदेव जी की जन्म कथा लिरिक्स || Baba Ramdev Janma Katha In Hindi Lyrics
    04 Jul
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    🙏🙏जय बाबा रामसा पीर की 🙏🙏

     

    बाबा रामदेव जी की जन्म कथा लिरिक्स

    || राजस्थानी कथा ||

    Baba Ramdev Janma Katha In Hindi Lyrics

     

     

    🙏🙏रामदेव जी की कथा 🙏🙏

     


    भादुड़ा री बीज रो जद चंदो करे प्रकाश।
    रामदेव बण आवसुं राखीजे विश्वास ।।


    रामदेव जी की कथा –

    इतिहासकारों  के अनुसार श्री कृष्ण के अवतार रामदेव  जी का

    अवतार सन 1442 में भादवा सुदी दूज के दिन राजस्थान के

    पोकरण के ताम्र वंशी राजा अजमल के यहां हुआ था.

     

     


    राजा अजमल श्री कृष्ण की भक्ती में लीन

    रहने के साथ ही धर्मपरायण राजा भी थे लेकिन

    उनकी भी विडंबना थी. वह निसंतान थे जिसके

    कारण वह काफी दुखी रहते थे. रामदेव जी के

    पिता राजा अजमल जो कि द्वारकाधीश के

    परम भक्त थे वह हमेशा अपने राज्य

    की सुख शांति की मनोकामना के लिए  द्वारका जाते थे.

     


    एक बार उनके राज्य में भयानक अकाल पड़ा

    और राज्य में अच्छी बारिश की मनोकामना लेकर

    अजमल जी द्वारिकाधीश पहुंच गए ऐसा माना

    जाता है कि भगवान द्वारिकाधीश की कृपा से

    उनके राज्य में बहुत अच्छी बारिश हुई.
    बारिश के ही दिन में जब एक दिन  सुबह

    किसान अपने खेतों में जा रहे थे.

     

     

    तो रास्ते में उन्हें उनके

    राजा अजमल मिल गए किसान उन्हें देख वापस घर

    की तरफ जाने लगे यह देख राजा ने पूछा कि वापस

    क्यों जा रहे हो तो किसानों ने बताया कि

    राजा अजमल जी आप निसंतान है इसलिए आपके

    सामने आने से अपशगुन हो गया है और अपशगुन

    के समय में हम बुआई नहीं करेंगे.

     

     


    राजा ने जैसे ही यह सुना तो बहुत दुखी हुए

    लेकिन एक कुशल शासक और गरीबों

    के मसीहा होने के नाते

    उन्होंने किसानों को तो कुछ नहीं

    कहा पर घर वापस

    आकर काफी निराश और परेशान हुए.

     


    फिर उन्होंने तय किया कि संतान प्राप्ति

    की मनोकामना लेकर द्वारिकाधीश के

    दर्शन करने जाऊंगा. इस मंशा

    के साथ वह द्वारिकाधीश पहुंचे वह भगवान

    द्वारिकाधीश के प्रसाद के रूप में लड्डू लेकर गए

     

     

    मंदिर में पहुंचकर राजा अजमल ने

    बहुत ही दुखी और भारी मन से भगवान

    द्वारिकाधीश की मूर्ति के सामने अपनी

    सारी व्यथा रखी और अपना  सारा दुख

    भगवान द्वारिकाधीश के सामने रखा.
    अपनी सारी बात करने के बाद वो मूर्ति को एकटक देखते रहे

     

     

      उन्हें ऐसे लगा कि भगवान की मूर्ति उन्हें

    मुस्कुराती हुई देख रही है.

    ऐसा देख अजमल जी को गुस्सा आया और

    उन्होंने वह प्रसाद रूपी लड्डू जो कि

    द्वारिकाधीश के लिए लाए थे.

     


    वह मूर्ति पर फेक दिया जो  कि द्वारिकाधीश

    की मूर्ति के सिर पर जा लगा

    यह सब वाक्य देख मंदिर में स्थित पुजारी 

    को लगा की राजा पागल हो गये  है 

     

     

    पुजारी ने राजा अजमल जी को  बोला कि

    भगवान यहां नहीं है भगवान तो

    समुद्र में सो रहे हैं अगर आपको उनसे

    मिलना है तो जाओ समुद्र में जाकर उनसे मिलो.

     


    बहुत दुखी होने के कारण राजा समुंदर के

    किनारे गए और समुद्र में कूद गए. भगवान

    द्वारिकाधीश ने राजा अजमल को समुद्र में दर्शन दिए

     

     

    श्रीकृष्ण ने स्वंय बलरामजी के साथ

    उनके घर अवतरित होने का वरदान दिया

    और कहा कि वह खुद भादवा की दूज

    के दिन राजा अजमल के घर पुत्र रूप में आएंगे

     

     

    राजा अजमल ने देखा कि भगवान के सिर

    पर पट्टी बंधी है. राजा अजमल जी ने पूछा भगवान

    आपको  यह चोट कैसे लगी, भगवान ने कहा

    कि मुझे मेरे एक प्यारे भक्त ने लड्डू मारा

    यह सुनकर राजा बहुत ही शर्मिंदा हुए

     

     

    अजमल ने भगवान से बोला मुझ

    अज्ञानी को कैसे पता होगा कि

    आप ही मेरे घर आए हैं तो भगवान ने कहा

    कि जब मैं तेरे घर आऊंगा तो आंगन में

    कुमकुम के पैर के निशान बन जाएंगे मंदिर

    के शंख अपने आप बजने लगेंगे

     

    यह सब सुनने के  बाद अजमल जी खुशी

    खुशी घर लौटे.अपनी रानी को सारी बात

    बताई उसके निशचित  समय के 

    बाद और भगवान के   वरदान अनुसार

    पहले बलरामजी ने वीरमदेव के रूप में

    राजा अजमल की पत्नि मैणादे  के गर्भ से जन्म लिया,

     

     

    इसके नौ माह बाद भगवान  भादवा की

    दूज के दिन भगवान कृष्ण राजा अजमल के

    घर रामदेव के  रूप मे  पालने में अवतरित हुए।
    रामदेव जी का परचा और बाल्य काल के किस्से
    बाबा रामदेव के रूप में प्रसिद्ध हुए श्री कृष्ण के

    अवतार रामदेव जी ने बाल्यकाल से ही

    अपनी बाल लीलाएं दिखानी 

    प्रारंभ कर दी थी

     

     

    पालने में प्रकट होने के बाद अपनी

    माता मेणादे को चमत्कार दिखाया.
    उनके आंचल से दूध की धार

    बालक रूपी रामदेव के मुख् में गिरने लगी

    और मां मेणादे  को चतुर्भुज रूप में दर्शन दिए

    छोटी  उम्र में दर्जी द्वारा बनाए कपड़े

    के घोड़े पैर बैठ उसे  आकाश में उड़ा ले गए.

     


    जब भैरव राक्षस को इन सब बातो का 

    पता चला तो  राक्षस ने अपने छोटे भाई  को

    रामदेव और उनके भाई वीरमदेव को

    पकड़ने भेजा तब भगवान श्री रामदेव ने

    घोड़े पर सवार होकर राक्षस को भाले से मारा.

     


    राक्षस के मरने के बाद उनके राज्य की जनता

    पर भैरव राक्षस ने अत्याचार करना प्रारंभ कर दिया

    राजा रामदेव ने भैरव राक्षस का वध

    कर राज्य की प्रजा को अत्याचार से मुक्त कराया.

     


    एक दिन जब रामदेव जी कहीं जा रहे थे तो

    रास्ते में व्यापारी लाखा बंजारा बैलगाड़ियों

    में मिश्री भरकर पोखरण की ओर आ रहा था

    तभी रास्ते में घोड़े पर आ रहे रामदेव जी

    से उसकी भेट हुई तो उन्होंने पूछा गाड़ी में क्या है

    तब लाखाने  कहा महाराज  नमक भरा है

    तो रामदेव जी ने कहा जैसी तेरी भावना यह

    कहते ही गाड़ी की सारी मिश्री नमक बन गई तब

    लाखा बंजारे को अपने झूठ पर पश्चाताप हुआ.

     


    उसने तुरंत भगवान रूपी रामदेव से

    माफी मांगी तब उन्होंने नमक को

    मिश्री में बदल दिया. इसके अलावा

    रामदेव जी के ढेरों ऐसे किस्से हैं

    जिससे उनके चमत्कार के बारे में पता चलता है.

     

     

    इन चमत्कारों का रामदेव जी का परचा

    दिखना भी कहते है जो की आम भाषा  में

    बहुत  प्रचलित है.कहते हैं कि भगवान

    रामदेव कलयुग के अवतारी थे.

     

    शेष सैया पर विराजमान महाशक्ति विष्णु

    का अवतार भगवान कृष्ण  ने कलयुग

    में अवतार भगवान रामदेव के रूप में लिया था

    उन्होंने कौड़ियों को ठीक किया लंगड़े को चलाया

    अंधे को आंखें दी.कहते हैं कि बाद में उन्होंने पोकरण

    राज्य अपनी बहन लाछा  बाई  को दहेज में दिया

    और रुणिचा के राजा बने  उनके दरबार में

    अर्जी लगाने वालों पर पीड़ित लोग ठीक हो रहे हैं.
    रामदेव जी की कथा – इसलिए कहते है रामसा पीर
    रामदेव जी  की परीक्षा लेने मक्का के पीर आए थे,

     

     

    जब उन्होंने परीक्षा के बाद वापिस जाने के

    लिए आज्ञा मांगी तो रामदेव जी ने कहा कि

    अब आप  वापिस नहीं जाओगे और मेरे साथ ही रहोगे।

    क्योंकि पीरों को बाबा कहा जाता है।

    और फिर रामदेव तो पीरों के भी पीर थे ,

    इसलिए उन्हें भी लोग बाबा कहकर पुकारते हैं।

     


    बाबा रामदेवजी की समाधि :-


    ऐसा माना जाता है कि बाबा रामदेवजी 

    ने1442 को भादवा सुदी ११ के दिन रुणिचा

    गांव के राम सरोवर पर सब रुणिचा वासियों

    के सामने  समाधी ली थी समाधी लेने  से

    पहले रामदेव जी ने सभी को कहा की हर

    महीने की शुक्ल पक्ष की दूज के दिन

    पूजा पाठ, भजन कीर्तन और  रात्रि जागरण करना।

     


    साल में एक बार मेरे जन्मोत्सव के उपलक्ष

    में तथा समाधि होने की  याद  में मेरे समाधि स्थल

    पर मेले  का आयोजन करना रामदेवजी ने कहा 

    था की मेरी पूजा पाठ में न कोई अंतर रखना न

    किसी तरह का भेद भाव  रखना

    उन्होंने ये कहते हुए समाधि ली और

    कहा कि मैं सदैव अपने भक्तों के साथ रहूंगा.

     


    रामदेव जी के  समाधि लेते ही पूरी प्रजा

    में बेचैनी बढ़ गयी और  शोक संचार हो गया प्रजा

    मे  चारो और हाहाकार मच गया और कुछ लोगो

    ने उन्हे बचाने  के लिए समाधी को

    खोद डाला समाधी खोदते ही सभी हैरान हो गये 

    क्योंकि उन्हे  रामदेव के  शरीर की जगह फूल मिले 

    पूरी प्रजा ने पुरे मन से उन्हे श्रद्धा सुमन अर्पित किये

    और तभी से हर वर्ष उनकी समाधी पर लोग हाजरी लगाने आते हैं.

     


    समाधी  लेन से पहले  ये संदेश दिया था 

    रामदेवजी ने  भगतो और रूणिचा वासिओ को
    महे तो चाल्या म्हारे गाँव, थां सगळा ने राम राम ,

    जग में चमके थारों नाम, करज्यों चोखा चोखा काम
    ऊँचो ना निंचो कोई,

    सरखो सगळा में लोही ,कुण बामण

    ने कुण चमार, सगळा में वो ही करतार
    के हिन्दू के मुसळमान, एक बराबर सब इंशान,

    ईश्वर अल्लाह तेरो नाम, भजता रहिज्यों सुबह शाम
    म्हे तो चाल्या म्हारे गाँव, थां

    सगळा ने राम राम,थां सगळा ने राम राम
    और फिर उन्होंने समाधि ले ली. 🙏🙏

     

     

     

    🙏🙏जय बाबा रामसा पीर की 🙏🙏
    🙏🙏कथा शेयर जरूर करें 🙏🙏

     

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